Tuesday, July 3, 2012

समय के साथ

समय के साथ
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लोग बदनाम हुए
लोग नाकाम हुए
लोग पहचाने गए
लोग महान भी हुए

जब भी पूछा
कभी खामोशी छाई तो
कभी कोहराम मचा

फिर यह , पत्थर-
कैसे  पूजा?
शायद मिट्टी यहीं से आयी
धार नदी की
इसने मोड़ी
फसलें लहलहाती पायी
कोख में इसके
दबी चिंगारी 
रात सभीकी इसने महकाई.
इसे तराशा, भाल बनाया
इसे सजाकर महल सजाया
मेरे हर पल, हर पग 
इसने साथ निभाया.  

आज मैंने इसे पूजा
कल मैं सजूंगा
पत्थर बन 
फिर कोई पूछेगा
देख मुझे 
किसने मुझको पूजा.



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