बूंद एक, जाने कहां
से
टपक - लेती है उछाल
कैद कर लेती, छोटा
सा आकाश
आगोश में अपने ।
अनगिनत बूंदें, अनगिनत
आकाश
बुलबुलों से फिरते
रोशनी सूरज की बिखेरती
रंग इंद्रधनुषी
इतराते रंगों पर -
टकराते
मिलजुल साथ चलते ।
कोई धूरी बना घूम रहा
कोई धक्का देता बढ़ता
फिर अचानक- टूट जाती
परत
समाजाता बुलबुला नदी
में
आकाश छिप जाता - अंतरिक्ष
में ।
सब कुछ शांत
कहीं कुछ हुआ ही नहीं
।
अचानक बदली एक
फिर मचल रही रौशनी
संग
शुरू एक और खेला नया
जाने कहाँ इसका अंत
।