Friday, May 3, 2013

नया मन्जर

कैसा गूंज रहा अट्टहास-

इन शहरों से,

पिघल रहा, पत्थर पहाड़ों के ।

कैसी उठ रही सिसकियां

इन गलियारों से

सरक रहे जंगल,

शहरों की सीमाओं से ।

सारे वहशी जानवर

डरे सहमे से - तक रहे-

कोई इन्सान न दिख जाये ।

पिघलते पत्थर -

सरकते जंगल -

सहमे जानवर -

देख नजारे सारे

सागर सारा टिक रह गया

कोटर में मेरी आंख के

बूंद एक आंसू की बन

न बह रहा - न टपक रहा ।

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