Friday, May 3, 2013

लड़ी सपनों की

तोड़ो मत सपनों की लड़ी

यही तो नदी एक बह रही

इस वीरान मरुथल में।

उमंगों की लहरें, समोई इसमें

आशा की किरण, मोतियों सी झिलमिलाती

इसी नदी में , जीवनधारा

विस्तृत कर रही, प्रकृति

कभी मौन तो कभी मारती किलकारियाँ ।

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