धरोहर है एक - परंपरा
कैसी छोड़ दूं इसे
?
बर्बरता, हिंस्त्रता,
पशुता
और इसमें थोड़ी सी
- मानवता ।
यही सौंप जाना,
आने वाले - कल को ।
आदि मानव मैं-
आदिम - सदियों से
सदियों तक ।
अवसर ही ना मिला
सभ्य होने का ।
चढा मुखौटे सवांरता
रहा
बस अपने आपको ।
आदिमता जो दिख रही
मुझे अतीत में
वही देखेगा भविष्य
मुझमें ।
कहां मांज पाया - परंपरा
अपनी
बहती गयी - धारा वक्त की
धोता रहा मुखौटे,
बैठ किनारे-
सदियों से - सदियों
तक ।
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