Friday, May 3, 2013

आदि मानव


धरोहर है एक - परंपरा

कैसी छोड़ दूं इसे ?

बर्बरता, हिंस्त्रता, पशुता

और इसमें थोड़ी सी - मानवता ।

यही सौंप जाना,

आने वाले - कल को ।

आदि मानव मैं-

आदिम - सदियों से

सदियों तक ।

अवसर ही ना मिला

सभ्य होने का ।

चढा मुखौटे सवांरता रहा

बस अपने आपको ।

आदिमता जो दिख रही

मुझे अतीत में

वही देखेगा भविष्य

मुझमें ।

कहां मांज पाया - परंपरा अपनी

बहती गयी -  धारा वक्त की

धोता रहा मुखौटे,

बैठ किनारे-

सदियों से - सदियों तक ।

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