गुलदस्ता
कभी नहाता रहा-रौशनी सूरज, चाँद की
अब आँखें चुँधियाती- देख दुकान की
टिमटिमा जलती रौशनी।
आँधी, तूफान, बिजली-कभी इसे लरजा न पाये
अब काँप जाता-कुछ लोगों की चहलकदमी पर।
न डरा कभी-देख मंडराते भँवरे, तितली, चिड़िया
सिहर सा जाता-लजा जाता-शर्मा जाता
पाकर हल्का सा स्पर्श।
जाने देश कौन सा- इसका
पर सजा यहाँ- गुल्दस्ते में।
साथी इसके और भी
जाने कहाँ सात समुंदर पार आए
सब सजे -बंधे रंगीन डोरी में।
रंग बिखेरते-
खुशबू -नहीं ढूंढता कोई।
खाना पीना मिलता-मुस्कुराने भर के लिये
मुरझाने की इजाजत- अभी नहीं।
बाजार भरा खरीददारों से,
नीलामी नहीं तो मोल भाव होते।
मतलब निकल जाने तक का-
इन्तजार गुलदस्ते को- खरीददारों को
फिर जा गिरना और सजाना
किसी कचरे के ढेर को।
क्यों सिहर जाता मैं-क्यों मुस्कुराते तुम,
देख दुकान पर -सजा प्रवासी गुलदस्ता?
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