Friday, May 3, 2013

तस्वीर

आधी  - अधूरी तस्वीर

जाने कहाँ - चित्रकार ?

आड़ी - तिरछी लकीरें,

कोई सीधी- किरण सूरज की हो,

तो कहीं थरथराती - सागर की लहर कोई।

थमा गया यह कटोरा,

फ़िर रहा मैं पर्वत जंगल-

झरनों से झरता निर्मल जल

भरता कटोरे में- पर

छलक जाता कभी तो

कभी सोख लेता कटोरा।

मुझसे भी बड़ा- साया मेरा

रंग सारे बदरंग कर रहा

मैं तरबतर पसीने में अपने

साये में अपने सुस्ताऊँ कैसे ?

क्या इन्हीं आधी अधूरी लकीरों में ही

छिपी अनगिनत तस्वीरें ?

पर कहाँ वो चित्रकार?

कहाँ उसकी तूली?

कहाँ छिपा रखे रंग अनेक ?

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