Wednesday, October 5, 2011

थकान

थकान

दिन भर,
थक हार कर,
काम से चूर,
लोगों की बातों से परेशान
जब भी मैं सो जाता-
मेरे स्वप्न में,
एक - स्वान भूकता.

बना तरह-तरह के चेहरे डराता.
मेरे मन कोने में
बसे नन्हे बालक को.
और वो बालक -
भागता-फिरता,
डरा सहमा सा.
पर वह स्वान नहीं रुकता,
पीछा करता.

हंसी विकराल उसकी,
अट्टहास करता,
मिट्टी में लोट पलोट हो
खुजली अपनी मिटाता .
लपलपाती जीभ-
बेकल करती
मचल उठता-
खा जाने को बेचैन-
मांसल, बेबस को.

नन्हा मासूम-
चढ़ जाता,
पेड़ की ऊँची शाख पर,
छिप बैठता
मधुमखी के छत्ते में
मधु में लिपटा -
स्वाद लेता.
अनजान -
नीचे बैठे भूंकते स्वान से.

मैं स्वप्न में ही सिहर जाता.
क्या होगा
जब टूटेगा छत्ता.
कभी तो भंग होगा,
स्वप्न.

मैं-वही सब
स्वप्न में देखता
जो दिन भर गुजार आता.

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