Saturday, October 29, 2011

जीवन कल

बार बार भेजता
सागर लहरों के रेले.
किये थे जिन्होंने
कभी पर्वतों को
रेतीले टीले .
अब सर धुनता सागर
जब सोख लेते ,
हर लहर
वही रेतीले टीले.
परिसीमित कर दिया
सागर का अहम्,
समय के फेर ने.

काँप गया ,
तूफ़ान का जोर
बिजली सी दौड़ा दी ,
आसमान में
जब देखा
हल्की सी हवा में
टूटते पत्ते को
मिट्टी बन ,
मजबूत करते जड़ों को.

हर महाविनाश पर ,
बोया जा रहा
बीज नया
संचार होता नवजीवन
रोक नहीं पाया कोई
निर छल, निर्मल ,
पावन-पल पल
समय की
मद्धम धार
अविरत ,
अनंत और अगाध.

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