Tuesday, October 11, 2011

तहखाने का अँधेरा

कैद कर रौशनी ,
पिटारे में अपने
तहखाने में उन्देलता.
बार-बार लगातार -
दीवानगी मेरी,
मिटा देती सारी थकान.
हर बार भर देती,
ताजा दम.
अचानक -
हाथ हल्का सा
रख पीठ पर-
पूछा एक अजनबी ने.
क्या है , माजरा?
देख उसे - पोंछ पसीना-
कहा मैंने- रौशनी भर रहा-
तहखाने में अपने.
जाने कब से-
घुट रहा
अँधेरे में.
सदियों से झांका तक नहीं.
बदबू, सीलन -
दूर करनी अब.
संजो रखना-
सारा सामान.
इतना बड़ा तहखाना-
इतना सा पिटारा,
देर कुछ और लगेगी,
पर - भरेगी रौशनी.
रख पिटारा सर पर -
मैं चलता बना
तहखाने की ओर.
हल्की सी- असमंजी मुस्कान
तैर गई, अजनबी के लबों पर-
उसके शायद यही देखा मैंने.
जब लौटा - अजनबी वहीं था,
हौले से कहा- सुनो बंधू
कभी कोई खिड़की या
रौशनदान खोल तहखाने का-
देखा तुमने.
जरा सी बदल दो सोच अपनी -
फिर देखो - सूझता कैसे समाधान.
जो क़ैद कर रहे -
पिटारे में अपने
अन्धकार है.
भर रहे तहखाना अपना-
सिर्फ अन्धकार से.
जो घिरा रहता सीमाओं से,
बंधा रहता दीवारों से
वही होता अन्धकार.
जो सीमाहीन , उन्मुक्त
वह - प्रकाश.
और अजनबी -
चुपचाप धीरे- धीरे चलता बना.
दूर तक ओझल होते -
देखता रहा मैं.


कौन था- कोई बहुरुपिया
कोई हमदर्द?
बना कर देखूं -
एक दरवाज़ा
या खोलूँ वह आधी जमीन पर
झांकती खिड़की .
जो क़ैद सदियों से
घुट रहा तहखाने में -
क्या घुल जाएगा,
इस धरा पर बिखरी रौशनी में.
चमत्कार पर करूँ भरोसा या
फिर भर पिटारे में रौशनी-
ले जाऊं तहखाने तक .
क्या अनर्थ होगा?
होगा तो भी- जल्द,
बंद कर लूंगा खिड़की.
कंपकंपाते हाथों से-
हल्की सी खोली ,
खिड़की मैंने.
असंभव ,
प्रतीत होने लगा संभव.
रीत गया अन्धेरा
नहाने लगा तहखाना-
रौशनी की किरणों में.
पूरी खोल दी- खिड़की मैंने.
खेलने लगा रौशनी में-
तहखाने का हर कोना
खुशबू मेरी बगिया की
भर गयी तहखाने में.
हिलोरें ले रहा- मन मेरा,
पर कौन था अजनबी ?
कहाँ गुम हो गया-
इक पल में. अपना ही चमत्कार-
देखा नहीं उसने.

दिन बीते-
बीते जाने कितने साल
भूला मैंने अजनबी -
शायद -भूला नहीं,
उसने मुझे.
आ पहुंचा एक दिन
ड्योढी पर मेरे.
देख खिला - खिला
तहखाना
फिर मुस्कुराया-
बोला- देखा बदलती सोच का नतीजा .
क्या रखा उस पिटारे में?
अनायास- मैं बोल पड़ा-
क़ैद कर रखा अँधेरा सारा.
सोचता - जला
राख कर दूंगा-
साथ दोगे मेरा तुम.
नहीं- हौले से बोला वह.
जैसे क़ैद नहीं होती रौशनी,
वैसे जलता नहीं अँधेरा.
आनंद लो - प्रकाशमय करो हर कोना
दूर हो जाएगा अँधेरा.
घुल प्रकाश में गुम हो जाता अन्धेरा-
मैं खडा रहा- यथावत,
कुछ बात और करूं उससे,
पर - फिर ओझल हो गया
वह अजनबी-
हमदर्द मेरा
दे उजाला - भर गया आनंद.

१५/०५/११

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