पल- पल ,
तिल- तिल,
घुट- घुट कर -
मरते देखा है
इसी चौखट पर,
तुम्हारे,
इस सच को.
कैसे कह सकते हो
तुम-
क्यों दिलासा देते हो
मुझे बार-बार,
इस पुतले को सदियों में ,
जलाकर एक बार
अंत हो गया - पाप का.
Sunday, October 16, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment