Sunday, October 30, 2011

कैसा है

कैसा है- मन
बिन पंखों के उड़ता -
गगन मगन.

कैसा है- जीवन ,
कुछ नहीं अपना
पर संजोता
हर कण.

कैसी हैं- आँखें
हो कर भी दो -
दिखता एक.

कौन है- यह अजनबी
देखा नहीं कभी
पर साथ मेरे अब भी.

कैसी है- डगर
कहीं नहीं मंजिल
पर बढ़ते ही जा रहे हमसफ़र .

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