कैसा है- मन
बिन पंखों के उड़ता -
गगन मगन.
कैसा है- जीवन ,
कुछ नहीं अपना
पर संजोता
हर कण.
कैसी हैं- आँखें
हो कर भी दो -
दिखता एक.
कौन है- यह अजनबी
देखा नहीं कभी
पर साथ मेरे अब भी.
कैसी है- डगर
कहीं नहीं मंजिल
पर बढ़ते ही जा रहे हमसफ़र .
Sunday, October 30, 2011
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