कविता मेरी नव जीवन ,
नव कल्पना नव उल्लास ,
या सिर्फ एक टाट का पैबंद.
वो नन्ही बूँद ओस की,
छिपा रखी घना कोहरा.
एक हल्की किरण,
आगोश में लिए-
तमस की कालिख .
उधार मांगता
झोंका हवा का
बेचैन रंगीनियाँ सूरज से
और खुशबू नन्ही कलियों से
बिखेरने इधर - उधर.
बेताब उस अमरलता सी
अमरलता से लिपटी.
या फिर कुछ भी नहीं
एक झूठ , इंतज़ार
सोये हुए सच का .
Sunday, October 16, 2011
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