Sunday, October 16, 2011

अब नहीं लौटूंगा

अब तुम्हारा
सच ही सुनुगा
राम को राम कहोगे -
कहूंगा,
रहीम न समझूंगा.
दिखाओगे जिसे
उसे ही देखूंगा-
नयन अपने
कभी ना खोलूंगा.
क्या सब कुछ मुक्त ,
मेरे लिए जब तक
मैं साथ तुम्हारे -
यह मेरी हंसीं ,
ये मेरे विचार ,
अधीनस्थ तुम्हारे.

ले चलो
तुम मुझे संग अपने.
अब चाह नहीं
मुक्त विहंग सी उड़ान.
सहम गया हूँ मैं
जबसे छीनी- हंसी
तुमने नन्ही सी बच्ची के होठों से.
किस बुत को खुदा बनाया
शैतान भी बेबाक.
सियासत तो थी तुम्हारी,
अब खुदा की खुदाई भी.
रुखसत होने दो मुझे,
नहीं करना नवयुग निर्माण.
बुझा दी है , लौ दिए की
छुपा ली है चिंगारी मैंने.
तुम्हारे साथ लौट नहीं सकता
समय पथ पर,
मेरा सफ़र तो
इस युग से भी परे.
शक्तिहीन ,
विचारहीन- तुम
विवश - मैं.
अब नहीं आयेगी ,
खामोशियों से मेरी
वेदमंत्रों की अजान.

अलग कर दिया तुमने
कलियों से खुशबू ,
लौ से तापस,
रौशनी से छाया,
बच्चों से बचपन.
सुन रहा हूँ अट्टहास तुम्हारा
इस रेतीले किले से
जिस पर बसाए तुमने ,
जाने कितने वीरान मंजर.

अब नहीं देखना ,
ना सुनना,
ना कुछ कहना.
अब नहीं लौटूंगा ,
यहाँ- पर.
पड़ाव आख़िरी नहीं मेरा
न मुक्ती की चाह.
छिपी चिंगारी मेरी
फिर कहीं -
किसी और दीपक की
लौ बनानी मुझे.

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