Sunday, October 16, 2011

अब जी मचलता

देख दोस्तों का दोस्ताना, इस हुजूम - ए- सफ़र में
दुश्मनों को गले लगाने, अब जी मचलता.

वफादारों ने वफ़ा, निभाई कुछ इस कदर
बेवफाओं को फिर, आजमाने को अब जी मचलता.

अपनों के अपनापन में, ऐसा लूटा दिल को हमारे ,
बैवजा सब कुछ लुटा, फकीरी को अब जी मचलता.

जलवे जिन्दादिलों के, देखे ऐसे हमने,
रिश्ता मौत से निभाने को, अब जी मचलता.

तपिश सूरज की, छिपी बादलों के ओट में ऐसी
जुगनुओं से रोशन घर करने को, अब जी मचलता.

मुस्कान हल्की सी, देखी ऐसी मासूम लबों पर,
उम्र भर रोने को, अब जी मचलता.

तमाम उम्र कौड़ियों को, दिल ऐसे तरसता रहा,
इस मुकाम पर हीरे मोती, लुटाने को अब जी मचलता.

मेरे हमसफ़र, मुझे गुमराह करने का शुक्रिया
मंजिल पाकर भी अपनी, हमराही बनने को अब जी मचलता.

रेत के दरिया में, दफ़न हुई मौजें ऐसी,
दूर लहराती बदली से, बूँद एक टपकने को अब जी मचलता.

राह- ए- मुसाफिर हैं हम, कब तक साथ निभाओगे,
मुकाम- ए- मंजिल देख, राह बदलने को अब जी मचलता.

बेताबियाँ इस दिल की, कुछ इस कदर बढीं
बेगाने हो तुम, पर अपनाने को अब जी मचलता.

लहलहाता जंगल जलता देख, दूर पहाड़ियों पर
रुख अपना मोड़ने को, दरिया का अब जी मचलता.

No comments:

Post a Comment