Sunday, October 30, 2011

सफ़र में

तुम मत छूना
मुस्कुराती ओस की बूँद.
अभी तो गोधूली
हुई नहीं.
लहराने दो उसे ,
खेलने दो अठखेलियाँ
हरी दूब की घास पर
हवा के साथ -साथ.

तुम मत तोड़ना
नन्हीं मदमस्त कोंपलें.
बतियाने दो इन्हें
कोयलों के साथ.
यही तो होंगी
नीव का पत्थर
न जाने कितने अनगिनत
नींड के निर्माण पर.

छुपा लो यह
रंगीली शाम
सूर्यास्त के पहले
यही तुम्हारे सफ़र में
साथ देंगी-
मंजिलों से परे
उस अंतहीन क्षितिज तक.

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