Tuesday, October 11, 2011

बातें

कैसी कैसी बातें
कहाँ-कहाँ से आती
कहाँ-कहाँ तक ले जाती.
शुरू जाने कब होती
जाने कब- कहाँ
ख़त्म होती.
दिन हो या रात
गर्मी या बरसात
भूख लगी या प्यास
जल में थल में या
गगन विशाल में
हर तरफ
सिर्फ बातें
हर तरह की बातें.

बातों से जन्म
ले रहीं नयी बातें,
या सिलसिलावर बातें.
कोलाहल करती या
गूंजती सन्नाटे में .
कुछ जरूरत नहीं-
जब करनी हो बातें.
न आँख न कान,
न जुबान
फिर भी पनप लेती- बातें.
बंद कर लो आँखें -
चुपचाप घिर जाता सन्नाटा
उभर आते जाने कितने चित्र
दीवारों पर, सडकों पर,
इस स्मृति पटल पर-
फिर शुरू हो जाती
अनगिनत बातें.

कोई पेड़ होंगी -
जड़ों सी फैलती,
टहनियों सी लचकती,
कोंपलों सी फलती,
चूमने गगन मचलती,
हर पल- घिरा छाओं में इनके.


मासूमी बातें,
मर्दानी बातें , जनानी बातें,
बतियाती आपस में- बातें.
समा प्रेम का बांधती,
मिलाती अजनबियों को
अपनों को करती बेगाना
देश विदेश की समस्याएं
हल करती - बड़ी बातें, छोटी बातें.


जिन्दों की बातें,
मुर्दों की बातें.
कल की बातें -
होती आज- और
धीरे धीरे बातों में
ढल बन जाता- कल.
बोलती बातें,
चुप्पी साधी बातें
बातों के बीच
जाने कितनी -छिपी बातें.
कविता में बातें,
कहानी में बातें
कलम की स्याही में,
किसी के आंसूओं में
घुली, सहमी सी ,
निकलने को मचलती-
बेकरार बातें.


कभी साथ चलती
तो कभी ठहर जाती
जाने किसका इंतज़ार करती,
रास्ता बुहारती.
गुजर जाते
काफिले अजनबियों के
फिर भी पथराई आँखों में -
जुगनू सी चमकती बातें .
कुर्सी पर बैठे - बैठे ,
दूर गरीबों का पेट पोसती,
कहीं किसी के बुढापे की लाठी
बनती कोसों दूर रह भी.
सारे हाल सुनाती,
कचोटते , कसमसाते मन का
उफान ठंडा करती
कहीं किसी को बेकल,
बेचैन करती बातें ,
सिर्फ बातें-
इधर उधर की बातें.


समुन्दर की लहरों सी,
सर पटकती रेत पर
पर सीमा नहीं उलान्घती ,
इस छोर से उस छोर तक
सीमाहीन नज़र आती
कहीं सोच विचार की
तो कहीं बेकार की बातें.
प्रेम की बातें , घृणा की बातें
सत्य की बातें, झूठ की बातें
घेर लेती कभी तो
कभी मुक्त करती.
छूती बातें , अछूती बातें.
सृष्टी से पहले की बातें
प्रलय के बाद की बातें
जो देखा , जो ना देखा
जो ना सुना, ना समझा
फिर भी सबकी बातें.


टकरा आपस में गूंजती
मन को कभी बींधती तो
कभी मरहम लगाती
यही नयी पुरानी,
कच्ची पक्की बातें.
गुलमुहर के पेड़ पर चहकती,
किसी सितारे के जन्म पर गूंजती,
कभी कानों तक पहुँचती ,
कभी मन को छु लेती
धरोहर में मिलती कहीं,
कोठरी में कहीं कैद
सदियों से
बातों की बातें, बातों सी बातें.
अंधी बातें, गूंगी बातें
ठहरी बातें, उड़ती बातें
जबाबी बातें, सवाली बातें
सरकारी बातें, फरियादी बातें.
पुल सा बांधती, या दरार पैदा करतीं .
समझ कर भी नासमझ बनी -
बासी बातें ताजा बातें.


बातों से खबरें बनती
खबरों से बातें
ख़त्म जहां होती ,
वहीं शुरू हो जाती
ना सिर -न पैर ,
सूरी - बेसुरी बातें
रंग -बिरंगी , फीकी स्याह बातें
थकी - थकी सी, अथक बातें.
झूठ को सच करती,
सच को करती झूठ
कहीं दिन में तारे दिखाती,
कहीं सपने मीठे.
कहीं जहर घोलती,
कहीं सरस अमृत.
पल में सुलझती,
कहीं सदियों उलझी
आपस की बातें,
देश विदेश की बातें.
झोपड़ों में रह
ख्वाब महलों के दिखाती
महलों को दिखा झोंपड़े डराती.
रेगिस्तान की मरीचिका जैसी
परिवेश अपना पल में बनाती
देश में रह विदेश को मचलती
टीस देश के विदेश में जा जगाती.
घर से दूर घर बसाती,
फिर भी याद घर की दिलाती
तरसाती बातें, मनभावन बातें.
महक संस्कृति की फैलाती
दिल खोल कहने पर भी,
रह जाती अनकही.
बुझे दीये की लौ पर थिरकती,
भाई - चारों के नारों पर अटकी,
नए अखबार पर बासी खबर सी,
रोजमर्रा की चालू चाय सी
धरम - करम की,
आस्तीन के सांप सी.
पती- पत्नी सी नरम -गरम
रूठी कभी तो कभी मानी.
ऐसी वैसी , सबकी जानी - पहचानी बातें.
ट्रेन का सफ़र हो या
सफ़र जीवन का
कभी आँखों से, कभी जुबान से
अजनबियों से मिलती, बिछुड़ती
उमंगे दिल में भरती,
मायूस मन को कचोटती.
सुख दुःख दिल के बांटती,
राज दिल के खोलती.
मिलने की घड़ी हो या
बिछड़ने का पल
संजो मोती सा,

हर पल संजोती
सुख दुःख बांटती ,
राज दिल के खोलती.
रात भर सहर को सराहती
देख सामने तुम्हे
टुकुर टुकुर निहोरती.
चाहती कुछ , कहती कुछ,
होता कुछ.
जाने पर - बस कोसती
दिल मसोसती
फिर भी जान जाती
मेरे दिल की बी , तुम्हारे दिल की बी


पानी की हो या पत्थर की
हाशिये पर खड़ी,
लकीर के फ़कीर सी
रेगिस्तानी ठूंठ सी बातें.
हिचकोले लेती नाँव सी
ना कोई कहता, फिर भी
हवा में - ठहरी ठहरी सी
चांदनी में नहाती,
सूरज में तपती कितने रूप धर ,
भाषा के ओट
जीवन रस उन्देलती
तेरी मेरी तस्वीर की-
कोरी , रंगीन बातें.


कामायनी , मधुशाला ,
गीता , कुरान में
मनु, गांधी, तुलसी,
नानक, कबीर की खजानों में दबी.
मखियों सी फलों पर भिनभिनाती
मधुमखी सी शहद बटोरती
सदियों गूंजती जानी पहचानी बातें .
पत्थरों को तराशती
मजदूरों की बातें
पिरामिड, ताजमहल, या
फिर पानी में भीगती
झोंपड़ी की बातें.
सीमा पर खड़े जवान की,
लहलहाते खेत देख किसान की
बेजुबानी, पसीने में तरबतर बातें.
मोनालिसा के मुस्कान की,
नन्हे मुन्ने की आड़ी तिरछी लकीरों की
उलझी कहीं हाथों की लकीरों में
पंडित की पोथियों में
धुल सी जमी.
बेबस का तन ढांपती,
मूंछें हिटलर की नोचती
साथ दे साए में गुम हो जाती.
चक्रव्यूह में उलझाती चंचल बातें,
व्यर्थ बातें, प्रतापी बातें.


ऐसे कैसे कह दूं भरी महफ़िल में
तेरे मेरे इजहार की, इनकार की,
तकरारी बातें.
सुना है कितनों ने,
बातें करती बातें.
कभी गुनगुना रही
कभी उमड़ घुमड़ रही
गरजती , बरसती, लरजती , तरसती
सारे जीवन का , रहस्य
आपस में सुना देती बातें.
साथ समय का दे
हर पल जीवन मृत्यु से रह परे
युगान्तारी बातें, अविनाशी बातें,
अलौकिक बातें.
अचर, अमर, अपराजेय
कभी कभी हो जाती
ऐसी बातें.
जो कवि ने लिखा,
और मनीषियों ने जो कहा
पाठकों ने पढ़ा-
पर कहाँ मन को भरमाया.
कितनी अधूरी,
फिर भी दोहराती
नयी नवेली,
सजी सजाई- पुरानी हवेली सी
खंडहरों से लटकती
झाड़ फानुस की बातें.

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