Sunday, October 16, 2011

प्रयास

कभी तो ऐसा हो,
आँखे खोलूं और-
सपने सच होता पाऊँ.
कदम बढाऊँ और-
सामने मंजिल पाऊँ.
वक़्त मिले और-
खुद से मिल आऊं.

कोई तो-
साथ मेरे,
दर्द भरे
गीत गुनगुनाए.

सोचता ही रहता-
ऐसा होता- तो कैसा होता.

कौन कहता-
होता नहीं ऐसा.
एक के साथ -
यह सब नहीं होते ,
पर सब के साथ -
कुछ तो होता.

कहीं ऐसा- हो
तो कैसा हो
स्वार्थ में-
परमार्थ सिद्ध हो जाए.

बुराई से-
भलाई हो जाए.
घृणा में- प्रेम
झलके.
झूठ से-
सच निकल पड़े.

सागर सींचते हुए खेत -
नदी से मिल जाए.
गरीबों की भूख-
अमीरों को पोसे.

होता है ऐसा -
किसने नहीं देखा?
रोज- आँखें मेरी
देखती.
जब खुलती-
बुझ जाता मन.
फिर सोचता-
कहीं ऐसा भी होता.
होता ऐसे तो-
रुक जाता जीवन चक्र.
यही तो होने को-
होते सारे प्रयास,
कभी सार्थक- कभी निरर्थक.

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