Sunday, October 16, 2011

चिंगारी

आओ ऐसी एक
दुनिया में चलें,
जहां राम, रहीम
नहीं हैं एक.
ईशा, नानक
बैठे हैं अलग .
रामायण, कुरान
कहते अलग जुबां.
बाइबल, गुरुग्रंथ हैं
डोर अलग अलग.
समझ गए तुम,
अलग नहीं- दुनिया.
ऐसी बस रही
हम सब के बीच.

अलग रखने में,
बीत गयी सदियाँ -
सब निरर्थक,
कोई नहीं सुनता,
कोई नहीं समझता.

मैं कहता हूँ-
रहने दो अलग.
होने दो होड़ -
बड़प्पन की .
होनी पर यकीन नहीं,
अनहोनी के प्रयास-
किस दुनिया में रहते हो
आँखें खोलो- देखो
कितना फर्क नज़र आता
मंदिर, मस्जिद , चर्च, गुरूद्वारे में.
मुझे नहीं समझना -
ईशा , मुहम्मद , साईं, नानक.
नहीं खानी फिर
गोली सीने पर.
कोई चाह नहीं.
अब महान बनने की.
मान लिया,
जो दिखता - वही सत्य.
बाकी सब -सिर्फ प्रश्न.
पर अंधों के लिए -
एक है सब
क्या सत्य- क्या असत्य,
जो सगुन - वही निर्गुण,
जैसे पानी - वैसे बादल,
जो दिन, वही रात.

अब तो-
गोधुली भी नहीं,
जहां मिलते
रात और दिन.
रंग बिरंगी दुनिया के -
कहाँ हैं सारे रंग.
सब नज़र आते फीके.

मत निकालो चिंगारी
पत्थरों से,
जाने किस- बेबस का घर जले.
मत निकालो
तिलों से तेल
जाने किसका- खेलता बचपन फिसले.

क्यों नहीं-
मान लेते तुम भी,
अनगिनत नदियाँ
मिलती सागर से.
जितना भी उन्देले मीठा जल
कोई कमी नहीं खारेपन में.
फिर भी जाने क्यूं-
रुकती नहीं यह बरसात,
रोकने नदी का
यह अथक प्रयास.

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